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आह्वान / रकेल लेन्सरस

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ऐसा हो कि अविश्वास की प्रकट स्थिरता
कभी मेरे मन को छलनी न करे ।
मुझे बच कर भाग जाने दो
निराशावाद की सुन्नता से
उचके हुए कन्धों की निष्पक्षता से ।
ऐसा हो कि जीवन में हमेशा मेरी आस्था रहे
हमेशा मेरी आस्था रहे
अनंत संभावनाओं में
ठग लो मुझे, ओ जलपरियों के मोहगीतों
छिड़क दो मुझ पर थोडा भोलापन !
मेरी त्वचा, कभी मत बन जाना तुम
कठोर, मोटा चमड़ा ।

ऐसा हो कि हमेशा मेरे आँसू बहें
असंभव सपनों के लिए
वर्जित प्रेम के लिए
लड़कपन की फंतासियों के लिए
जो खंडित हो गए हैं सब
ऐसा हो कि मैं भाग निकलूँ यथार्थवाद की बद्ध सीमाओं से
बचाए रखूँ अपने होंठों के ये गीत
ऐसा हो कि वे असंख्य हों
शोर भरे
और ध्वनियों से परिपूर्ण

ताकि मैं गा के भगा सकूँ मौन दिनों की धमकियाँ