क्या तुमने कभी उस साँप के बारे में सुना है
जिसके आक्रमण का दुष्टतापूर्ण ढंग
झील के तल पर निर्जीव और निस्सहाय
होने का नाटक करना है ?
आश्वस्त, कि वह मरा हुआ है, शिकार
बेखटके जाता है उसके पास
और चुकाता है क़ीमत जल्लाद के इलाके में
अतिक्रमण करने की निपट सरलता की ।
एक कपटी साँप की तरह,
समय, हमें इस भ्रान्ति में रहने देता है
कि उसके भय का कोई अस्तित्व ही नहीं है ।
यौवन, अल्पकालिक और सुन्दर,
दुबका रहने देता है उसको,
कायर की तरह, झील के तल पर.
और हम नाचते हैं, उसे अनदेखा कर
अपने निरर्थक प्रयासों में रत, समझ पाने में असमर्थ,
उस विश्वासघात को जो वह लिए बैठा है हमारे लिए ।
झूठा चापलूस, वह हमें वह सब कुछ
देने का दावा करता है जो वह पहले से ही जानता है
कि वह हमसे जल्द ही छीन लेगा ।
जब हम उस साँप का चेहरा देखते हैं,
जब चाल के अंत में हमें एहसास होता है,
अक्सर देर हो चुकी होती है, बहुत रात बीत चुकी होती है
और हम लगभग हमेशा बहुत ज़्यादा थक चुके होते हैं ।