Last modified on 2 अगस्त 2012, at 14:10

सपाट उदासी / रकेल लेन्सरस

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 2 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रकेल लेन्सरस |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बिस्तर क्षितिज में लगी खपच्ची होता है ।
जो कुछ भी जीवित है समा जाता है उसकी सीमाओं में ।
वे जन्म देने के लिए यहाँ आती हैं, चेहरा ऊपर कर के लेटी,
हमारे लिए जगह बनाने के वास्ते, वर्तमान को धकेलतीं ।
मैं भी लौटूँगी एक दिन । एक साफ़, निर्मल दिन,
मैं उसपर लेट जाऊँगी हमेशा-हमेशा के लिए ।

बस, मुझे इस उदासी को लिख लेने दो अपनी नोट-बुक में ।
उदासी, सेक्स की तरह,
एल्फ़ा से शुरू होती है और ओमेगा में समाप्त होती है ।
जब सब कहा-सुना-किया जा चुका है,
मैं स्वयं ही वह गिद्ध हूँ
जो अपने ही शव के ऊपर काट रहा है धीमे-धीमे चक्कर ।