अल्लाह के निन्नानबे नामों की तरह तुम्हारी विरुदावली भी असम्पूर्ण ही रह जाती है।
तुम्हारे अनेक रूपों को विश्व देखता है और प्यार करता है, किन्तु तुम्हारा जो अत्यन्त अपनापन है, तुम्हारे अस्तित्व का सार, उसे कोई देखता या जानता नहीं।
जो तुम्हारे उस रूप को पहचान सकता है, उसके तुम सम्पूर्णत: वश हो जाओगी। जो तुम्हारे उस नाम का उच्चारण कर सकता है, वह तुम्हारा सखा है, पति, राजा, देवता और ईश्वर है।
किन्तु अल्लाह के निन्नानबे नामों की तरह तुम्हारी विरुदावली भी असम्पूर्ण रह जाती है।
दिल्ली जेल, 10 अप्रैल, 1933