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बहेलिये / शम्भु बादल

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बहेलिए !
क्या बताओगे
हिमालय के आँचल में
विश्राम करते देवदारों की
उदार भव्यता और
उनके शीर्ष पर
मचलने वाली चिडि़यों के
गीतों की मोहकता
तेरे मन के
किसी छोर को क्यों नहीं छूतीं ?