Last modified on 3 अगस्त 2012, at 12:43

सम्मेलन / शम्भु बादल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:43, 3 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शम्भु बादल }} {{KKCatKavita}} <poem> सम्मेलन लाय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सम्मेलन लाया गया है
शहर छोटा है
सम्मेलन बहुत बड़ा
सो छलक-छलक पड़ता है

कविता-कहानी-साहित्य-संस्कृति
शोषण-ग़रीबी-सर्वहारा पर
बड़े-बड़े विचार हैं
वातानुकूलित सम्मेलन के पास

रंग-बिरंगी साड़ियों में महिलाएँ
चहकती युवतियाँ
सपनीले युवक
खेतों-खदानों के लोग
सड़कों-फ़ुटपाथों के जीव
सभी आँखें फाड़-फाड़ देखते हैं
कान खड़े कर-कर सुनते हैं
उनकी ही बात
कैसे-कैसे लोग
कैसे-कैसे कहते हैं !

मुर्गों की टाँगें बड़ी प्यारी हैं
सो मुर्गे फड़फड़ा रहे हैं टाँग-रहित
सम्मेलन के बाहर
अब मुर्गे बाँग नहीं देंगे
लोगों की टूटेगी नींद कैसे
इस गँवई शहर में ! ?