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मैं अमरत्व भला क्यों माँगूँ / अज्ञेय

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 मैं अमरत्व भला क्यों माँगूँ?

प्रियतम, यदि नितप्रति तेरा ही स्नेहाग्रह-आतुर कर-कम्पन
विस्मय से भर कर ही खोले मेरे अलस-निमीलित लोचन;
नितप्रति माथे पर तेरा ही ओस-बिन्दु-सा कोमल चुम्बन
मेरी शिरा-शिरा में जाग्रत किया करे शोणित का स्पन्दन;
उस स्वप्निल, सचेत निद्रा में प्रियतम! मैं कब जागूँ!
मैं अमरत्व भला कब माँगूँ!

डलहौजी, 1934