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प्रियतम! जानते हो / अज्ञेय

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प्रियतम! जानते हो, सुधाकर के अस्त होते ही कुमुदिनी क्यों नत-मस्तक हो कर सो जाती है?
इसलिए नहीं कि वह प्रणय से थकी होती है।
इसलिए नहीं कि वह वियोग नहीं सह सकती।
इसलिए नहीं कि वह सूर्य के प्रखर ताप से कुंठित हो जाती है।
प्रियतम! वह इसलिए है कि वह एक बार फिर सुधाकर की शीतल ज्योत्स्ना में जागने का सुख अनुभव करना चाहती है, वह चाहती है सुधाकर के कोमल स्पर्श से चौंक कर, उठ कर, एक अलस, सलज्ज विस्मय में सिमटते हुए भी प्रकट हो कर पूछना, 'जीवन, तुम्हीं हो?'

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