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किरण मर जाएगी / अज्ञेय

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 किरण मर जाएगी!

लाल होके झलकेगा भोर का आलोक-
उर का रहस्य ओठ सकेंगे न रोक।
प्यार की नीहार-बूँद मूक झर जाएगी!
इसी बीच किरण मर जाएगी!

ओप देगा व्योम श्लथ कुहासे का जाल-
कड़ी-कड़ी छिन्न होगी तारकों की माल।
मेरे माया-लोक की विभूति बिखर जाएगी!
इसी बीच किरण मर जाएगी!


लखनऊ, 4 नवम्बर, 1946