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काँगड़े की छोरियाँ / अज्ञेय

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काँगड़े की छोरियाँ कुछ भोरियाँ सब गोरियाँ
लाला जी, जेवर बनवा दो खाली करो तिजोरियाँ!
काँगड़े की छोरियाँ!

ज्वार-मका की क्यारियाँ हरियाँ-भरियाँ प्यारियाँ
धन-खेतों में प्रहर हवा की सुना रही है लोरियाँ-
काँगड़े की छोरियाँ!

पुतलियाँ चंचल कालियाँ कानों झुमके-बालियाँ
हम चौड़े में खड़े लुट गये बनी न हम से चोरियाँ-
काँगड़े की छोरियाँ!

काँगड़े की छोरियाँ कुछ भोरियाँ सब गोरियाँ।

काँगड़ा-नूरपुर (बस में), 24 जून, 1950