भाले की अनी-सी बनी बगुलों की डार,
फुटकियाँ छिट-फुट गोल बाँध डोलती
सिहरन उठती है एक देह में
कोई तो पधारा नहीं, मेरे सूने गेह में-
तुम फिर आ गये, क्वाँर?
दिल्ली, अक्टूबर, 1950
भाले की अनी-सी बनी बगुलों की डार,
फुटकियाँ छिट-फुट गोल बाँध डोलती
सिहरन उठती है एक देह में
कोई तो पधारा नहीं, मेरे सूने गेह में-
तुम फिर आ गये, क्वाँर?
दिल्ली, अक्टूबर, 1950