फूल को प्यार करो पर झरे तो झर जाने दो,
जीवन का रस लो : देह-मन-आत्मा की रसना से
पर जो मरे उसे मर जाने दो।
जरा है भुजा तितीर्षा की : मत बनो बाधा-
जिजीविषु को तर जाने दो।
आसक्ति नहीं, आनन्द है सम्पूर्ण व्यक्ति की अभिव्यक्ति :
मरूँ मैं, किन्तु मुझे घोषित यह कर जाने दो।
भीमताल, देहरादून (मोटर में), 24 सितम्बर, 1952