Last modified on 8 अगस्त 2012, at 16:40

सीढ़ियाँ / अज्ञेय

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:40, 8 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=इन्द्र-धनु रौंदे ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अम्बार है जूठी पत्तलों का : निश्चय ही पाहुने आये थे।
बिखरी पड़ी हैं डालियाँ-पत्तियाँ : किसी ने तोरण सजाये थे।

गली में मचा है कोहराम भारी : मुफ़्त का पैसा किसी ने पाया था।
उठती है आवाज तीखे क्रन्दन की : निश्चय ही कोई बहू लाया था।

दिल्ली, 27 अक्टूबर, 1954