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रूप की प्यास / अज्ञेय

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दृश्य के भीतर से सहसा कुछ उमड़ कर बोला :
सुन्दर के सम्मुख तुम्हारी जो उदासी है-
वह क्या केवल रूप, रूप, रूप की प्यासी है
जिस ने बस रूप देखा है उस ने बस
भले ही कितनी भी उत्कट लालसा से केवल कुछ चाहा है
जिस ने पर दिया अपना है दान
उस ने अपने को, अपने साथ सब को, अपनी सर्वमयता को निबाहा है।

मैं गिरा : पराजय से, पीड़ा से लोचन आये भर-से
पर मैं ने मुँह नहीं खोला।

मेल्क मठ (आस्ट्रिया), 19 जून, 1955