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पगली आलोक-किरण / अज्ञेय

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ओ तू पगली आलोक-किरण,
सूअर की खोली के कर्दम पर बार-बार चमकी,
पर साधक की कुटिया को वज्र-अछूता
अन्धकार में छोड़ गयी?

मोती बाग, नयी दिल्ली, 17 जून, 1957