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सोन-मछली / अज्ञेय

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हम निहारते
रूप काँच के पीछे
हाँप रही है, मछली ।

रूप तृषा भी
(और काँच के पीछे)
हे जिजीविषा ।

क्योतो, 10 सितम्बर, 1957