Last modified on 9 अगस्त 2012, at 17:05

दुःसाहसी हेमंती फूल / अज्ञेय

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:05, 9 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=पहले मैं सन्नाटा ब...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लोहे
और कंकरीट के जाल के बीच
पत्तियाँ रंग बदल रही हैं।
एक दुःसाहसी
हेमन्ती फूल खिला हुआ है।
मेरा युद्ध प्रकृति की सृष्टियों से नहीं
मानव की अपसृष्टियों से है।
शैतान
केवल शैतान से लड़ सकता है।
हम अपने अस्त्र चुन सकते हैं : अपना
शत्रु नहीं। वह हमें
चुना-चुनाया मिलता है।