Last modified on 9 अगस्त 2012, at 17:06

हरा अंधकार / अज्ञेय

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 9 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=पहले मैं सन्नाटा ब...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रूपाकार
सब अन्धकार में हैं :
प्रकाश की सुरंग में
मैं उन्हें बेधता चला जाता हूँ,
उन्हें पकड़ नहीं पाता।
मेरी चेतना में इस की पहचान है
कि अन्धकार भी
एक चरम रूपाकार है,
सत्य का, यथार्थ का विस्तार है;
पर मेरे शब्द की इतनी समाई नहीं-
यह मेरी भाषा की हार है।
प्रकाश मेरे अग्रजों का है
कविता का है, परम्परा का है,
पोढ़ा है, खरा है :
अन्धकार मेरा है,
कच्चा है, हरा है।

बर्मिंगहम-लन्दन (रेल में), 14 नवम्बर, 1970