Last modified on 10 अगस्त 2012, at 12:11

कहने की बातें / अज्ञेय

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 10 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=नदी की बाँक पर छाय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुनो!
कुछ बातें ऐसी हैं
जो कहने की नहीं हैं
क्यों कि वास्तव में
कहने की तो वही हैं
पर कहना उन्हें इतिहास में बाँधना है
जो अतीत में है
जब कि बातें वे
बीतती नहीं हैं : जब कि कहना ही
बीत जाता है
सहना भर रह जाता है
और समय का सोता
रीत जाता है।