Last modified on 10 अगस्त 2012, at 16:29

इतिहास-बोध / अज्ञेय

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:29, 10 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=नदी की बाँक पर छाय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 इन्हें अतीत भी दीखता है
और भवितव्य भी
इस में ये इतने खुश रहते हैं
कि इन्हें यह भी नहीं दीखता!
कि उन्हें सब कुछ दीखता है पर
वर्तमान नहीं दीखता!
दान्ते के लिए यह स्थिति
एक विशेष नरक था
पर ये इसे अपना इतिहास-बोध कहते हैं!

लखनऊ, 14 नवम्बर, 1980