भोर। एक चुम्बन। लाल।
मूँद लीं आँखें। भर कर।
प्रिय-मुद्रित दृग
फिर-फिर मुद्रांकित हों-
क्यों खोलें?
आँखें खुलती हैं। दिन। धन्धे।
खटराग।
ऊसर जो हो जाएगा पार
वही लाली क्या फिर आएगी?
नयी दिल्ली, दिसम्बर, 1980
भोर। एक चुम्बन। लाल।
मूँद लीं आँखें। भर कर।
प्रिय-मुद्रित दृग
फिर-फिर मुद्रांकित हों-
क्यों खोलें?
आँखें खुलती हैं। दिन। धन्धे।
खटराग।
ऊसर जो हो जाएगा पार
वही लाली क्या फिर आएगी?
नयी दिल्ली, दिसम्बर, 1980