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भोर : लाली / अज्ञेय

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भोर। एक चुम्बन। लाल।
मूँद लीं आँखें। भर कर।
प्रिय-मुद्रित दृग
फिर-फिर मुद्रांकित हों-
क्यों खोलें?
आँखें खुलती हैं। दिन। धन्धे।
खटराग।
ऊसर जो हो जाएगा पार
वही लाली क्या फिर आएगी?

नयी दिल्ली, दिसम्बर, 1980