Last modified on 10 अगस्त 2012, at 16:36

जा! / अज्ञेय

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:36, 10 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=नदी की बाँक पर छाय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 जा!
जाना है तो ऐसे जा :
या तो गाते-गाते
या फिर तम में जागे-जागे
सहसा पाते
वह जो गाना था, प्रकाश,
वह यह पाया-
यह-हाथ की पहुँच से, बस
तिनका-भर आगे!
हाथ बढ़ा और-
जा!

बिनसर, 19 जून, 1981