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मैत्रेय / अज्ञेय

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(1)
तरु और नदी के बीच
ऊर्ध्वमुख गति :
और असीमोन्मुख प्रवाह के बीच
उसे सम्बोधि प्राप्त हुई।
यही तो है सम्बोधि
मुक्त ऊर्ध्व-विस्तार
असीम क्षितिजोन्मुख विस्तार के बीच
जीवन क्षण की पहचान।

(2)
हर बुद्ध
क्षण का आविष्कर्ता और सर्जक होता है
वह क्षण जीवी है
काल ऐसे क्षणों की
अनन्त स्रोतस्विनी है :
समस्या उन क्षणों को
पकड़ते चलने की है।

(3)
अब नदी दूर चली गयी है
अन्तःसलिल हो गयी है
तरु बदल गया है
झंडियों से बँधा है
और क्षण का अन्वेषी
मन्दिर से घिर गया है
सोने से मढ़ गया है
लाखों उस प्रतिमा को
प्रणाम करने आते हैं।
उस एक ज्वलन्त क्षण का
आविष्कर्ता
अब फिर कब आएगा?