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ओ साँइयाँ / अज्ञेय

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झील पर अनखिली
लम्बी हो गयीं परछाइयाँ
गहन तल में कँपी यादों की सुलगती झाँइयाँ
आह! ये अविराम अनेक रूप विदाइयाँ
इस व्यथा से ओट दे ओ साँइयाँ!