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उँगलियाँ बुनती हैं / अज्ञेय

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उँगलियाँ बुनती हैं लगातार
रंग-बिरंगे ऊनों से हाथ, पैर,
छातियाँ, पेट दौड़ते हुए घुटने,
मटकते हुए कूल्हे :
उँगलियाँ बुनती हैं
काले डोरे से चकत्ता दिल का-
सफ़ेद, सफ़ेद धागे से
आँखों के सूने पपोटे।

उँगलियाँ बुनती हैं
लगातार बेलाग भूखें, प्यासें,
हरकतें, कार्रवाइयाँ,
हंगामे, नामकरण, शादियाँ-सगाइयाँ
आयोजन, उत्सव-समारोह, खटराग कारनामे।

उँगलियाँ बुनती हैं
सिर्फ घुटे हुए दिल,
सिर्फ़ मरी हुई आँखें।
उँगलियाँ बुनती हैं...

नयी दिल्ली, 27-28 सितम्बर, 1968