ऐसा क्यूं होता है
जब शरीर को खिलौना
समझ लिया जाता है
अचानक स्त्री का शरीर
उपभोक्ता की
वस्तु हो जाता है
प्रकाशक के लिए
वह न्यू-कमर
लेखक के लिए
उसका संग
शोध की अनिवार्य वस्तु
आकलन करता मन
कहीं बेमानी लगता है
जब उस की नज़र में
स्त्री केवल
बाज़ार का केन्द्र होती
या
उपभोग की वस्तु !
वाह रे
मनुष्य अपनी हदों
को पार कर
सभ्य खाल में छुपाए
बैठा है अपने संग एक
राक्षस
जी हां ! यह कोई नई
बात नहीं
जब पिता, भाई
रिश्तेदार तक
बन गए हांे कुकर्मी
तो इन सभ्य लोगों को
कहां तक
पूछें !
अजीब है दुनिया
अजीब हैं लोग
नाटक करते साले किसी
भांड़ से कम नहीं