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पिता / लालित्य ललित

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पिता
पूरे परिवार को संवारता है
मकान बनाता है
बच्चों की परवरिष
शिक्षा से लेकर
नौकरी-शिक्षा तक
पिता घर की एक अपरिहार्य
स्थिति में होता है
जिसे नकारा नहीं जा सकता
पिता घर का वह
आधार-स्तंभ होता है
जो अपनी इच्छाएं बतलाता है
नहीं
किसी को जताता नहीं
यूं ही ख़ामोश रहता है
लेकिन परिवार में ख़ुद को
तलाशता है
बाबू जी जल्दी करो देर हो जाएगी
चीकू की बस निकल जाएगी
और हां !
प्रकाश की दुकान से
दो किलो दूध
एक दर्जन अंडे
ज़रूर ले आना
और हां !
बाबू जी ज़रा
जल्दी आना
इनको ऑफिस जाना है
ठगा-सा पिता
ख़ामोश है
धीरे-धीरे क़दम बढ़ाता
चल पड़ता है
चंद खुशियों की
तलाश में
पथराई आंखों से
देखता है आसमान
भाग्यवान
क्यों मुझे छोड़ गई