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दानी महिला / लालित्य ललित

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वह तन बेचती है
मन बेचती है
और तो और
समय बेचती है
काफ़ी समय तक
वह बिकती रही
आज आलीशान घर की
मालकिन है
सोचती है
कि वह कितनी बिकाऊ थी
जिसने ठसके से
बिल्डिंग खड़ी कर ली
और मुस्कराते हुए
अंग्रेज़ी फ़िल्म देखने लगी
अनपढ़ महिला है
चैनल बदलना जानती है
कितनों के मन को
तन को
तिजोरियों को
ख़ाली कर दिया
और ख़ुद को भर लिया
अपाहिज़ों, अंध विद्यालयों और
विधवा आश्रमों को दान देती है
मंदिर जाना नहीं भूलती
दानियों की श्रेणी में
उसका नाम सर्वोपरि है
वह क्या करती है
क्यों करती है ?
घर-परिवार में कौन हैं ?
कहां से आई है ?
पर सब जानते हैं
ख़ूब-पैसे वाली है
घर भी लक-दक है
दिवाली पर ख़ूब देती है
बख़्शीश ‘‘हेमा मालिनी लगती है
हमें तो अपनी बीबी जी !’’
फूलवती ने
रामकली से
बतियाते हुए कहा
परदे की ओट से
बीबी जी मुस्करा देती हैं ।