Last modified on 8 अक्टूबर 2007, at 00:55

एक दिन / लाल्टू

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:55, 8 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }} जुलूस<br> सड़क पर कतारबद्ध<br> छोटे -छोट...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


जुलूस
सड़क पर कतारबद्ध
छोटे -छोटे हाथ
हाथों में छोटे-छोटे तिरंगे
लड्डू बर्फ़ी के लिफ़ाफ़े

साल में एक बार आता वह दिन
कब लड्डू बर्फ़ी की मिठास खो बैठा
और बन गया
दादी के अंधविश्वासों सा मज़ाक

भटका हुआ रिपोर्टर
छाप देता है
सिकुड़े चमड़े वाले चेहरे
जिनके लिए हर दिन एक जैसा
उन्हीं के बीच मिलता
महानायकों को सम्मान
एक छोटे गाँव में
अदना शिक्षक लोगों से चुपचाप
पहनता मालाएँ

गुस्से के कौवे
बीट करते पाइप पर
बंधा झंडा आसमान में
तड़पता कटी पतंग-सा
एक दिन को औरों से अलग करने को।