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अभिशप्त मैं / संगीता गुप्ता

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अभिशप्त मैं
लगातार घिरी भीड़ से
फुरसत नहीं
ख़ुद तक पहूँचने की
कैसी है यह नियति
मेरे प्रभु

तरसती हूँ
सघन एकान्त के कुछ पलों के लिए
जो हों सि़र्फ मेरे

दे सकोगे
मेरे प्रभु
कुछ पल
सि़र्फ मेरे लिए ?