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जीवन / संगीता गुप्ता

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जीवन
ब्लाटिंग पेपर की तरह
सब सोख लेता है

सच - झूठ
दुख - सुख
स्याह - उजास
आस - हताष

और जब
ऐसा लगता है कि
कहीं कुछ नहीं बचा
तब चुपके से
कानों में कोई
कह जाता है
अभी बची हुई हैं
स्मृतियाँ