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संध्या गुप्ता/ परिचय

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संध्या गुप्ता सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ.संध्या गुप्ता अब इस दुनियां में नहीं रही। पिछले कई माह से जीभ के कैंसर से पीड़ित चल रही डॉ.गुप्ता ने गुजरात के गांधी नगर में आठ नवम्बर को सदा के लिए आंखें मूंद ली हैं। वह अपने पीछे पति सहित एक पुत्र व एक पुत्री को छोड़ गयी है। पुत्र प्रो.पीयूष यहां एसपी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के व्याख्याता है। उनके आकस्मिक निधन पर विश्वविद्यालय परिवार ने गहरा दुख प्रकट किया है। प्रतिकुलपति डॉ.प्रमोदिनी हांसदा ने 56 वर्षीय डॉ.गुप्ता के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि दुमका से बाहर रहने की वजह से आखिरी समय में उनसे कुछ कहा नहीं जा सका इसका उन्हें सदा गम रहेगा। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि हिंदी जगत ने एक अनमोल सितारा खो दिया है।

तीन अगस्त 2009 को नई दिल्ली के हिंदी भवन के सभागार में आयोजित एक समारोह में दुमका की डॉ.संध्या गुप्ता को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान डॉ.गुप्ता को उनकी काव्यकृति 'बना लिया मैंने भी घोंसला ' के लिए दिया गया था। शिक्षाविद् व रचनाकार डॉ.गुप्ता हिंदी की उत्कृष्ट सेवा के लिए भारतेन्दु हरिश्चन्द्र राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी थी। 'राष्ट्रीय एकता में कवियों का योगदान' नामक उनकी एक पुस्तक का हाल के दिनों में भारत सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित की गयी थी। उनकी दर्जनों प्रमुख कृतियों में कोहरे का भोर भी शामिल है। प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी स्व.कृष्ण प्रसाद व स्व.प्रेमा देवी की पुत्री डॉ.गुप्ता इन दिनों सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका वातायण के संपादन का दायित्व निभा रही थी।