स्नेह से
दुलराया नहीं कभी
हर दिन
नयी जिम्मेदारी की
पोटली बांध
रख गयी सिर पर
जब मिली
यही कहा
देखो
मांगना मत कभी
और
वह देती रही
देती ही रही
थक कर
जब भी
राहत के दो पल
सिर्फ दो पल चाहे -
किंचित हंस कर बोली
कहा था न
कुछ मत मांगना