Last modified on 13 सितम्बर 2012, at 13:40

घर / संगीता गुप्ता

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:40, 13 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगीता गुप्ता |संग्रह=समुद्र से ल...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


ईट, पत्थर, गारे
सीमेंट से
नहीं बनता
घर बनता है
आस्था से औरत की -
पल - पल मिटती
और फिर - फिर खड़ी होती

भले ही
रेत का घरौंदा
समझे
आदमी
और छोड़े तो छोड़ जाये

पर अब
भरभरा कर
नहीं टूटता वह
किसी के चले जाने से

औरत रहती है
और बना रहता है घर