Last modified on 13 सितम्बर 2012, at 15:39

साथी / संगीता गुप्ता

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:39, 13 सितम्बर 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


लम्बी बीमारी के बाद
दफ्तर आयी
आठवीं मंजिल से
कलकत्ता
भव्य, भला दिखाता

फाइलों पर
देर तक झुकी,
थकी दृष्टि उठाती
न जाने कब से
कहां से
वह
खिड़की पर बैठा
आंखें चार होते ही
जोर से चीखता
हतप्रभ, अवाक्
सोचती
अब और क्या होना
शेष रहा


मन
भय से सिहर उठता
टेबल पर रखा
पानी
पी जाती,
हाथ कांप रहे
कमजोरी से
या
अनिष्ट की आशंका से

सहसा फिर अगले ही पल
सहज हो
कह उठती,

अकेले हो ?
आओ
साथ हो लो
ओ गिद्ध