Last modified on 3 अक्टूबर 2012, at 04:50

सूर्यनमस्कार / कविता वाचक्नवी

Kvachaknavee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:50, 3 अक्टूबर 2012 का अवतरण (फॉर्मेट व वर्तनी)

सूर्य-नमस्कार'


झिर्रियों की धूप

देती है आभास

बाहर

उग गया है, सूर्य ।

कुछ पल

लुके-छिपे, बंद झरोखों-दरारों से

झाँक लेगा

किसी एक कोने, नुक्कड़, किनारे ।


अंधेरी कोठरियों के वासी

रहेंगे ठिठुरते ही

काँपते ही

तड़फड़ाते ही ।


हड्डियों तक

बर्फ़ जमे लोग

कैसे करें

सूर्य-नमस्कार ?