एक तू ही नहीं है
कवि: साहिर लुधियानवी
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हर चीज़ ज़माने की जहाँ पर थी वहीं है, एक तू ही नहीं है नज़रें भी वही और नज़ारे भी वही हैं ख़ामोश फ़ज़ाओं के इशारे भी वही हैं कहने को तो सब कुछ है, मगर कुछ भी नहीं है हर अश्क में खोई हुई ख़ुशियों की झलक है हर साँस में बीती हुई घड़ियों की कसक है तू चाहे कहीं भी हो, तेरा दर्द यहीं है हसरत नहीं, अरमान नहीं, आस नहीं है यादों के सिवा कुछ भी मेरे पास नहीं है यादें भी रहें या न रहें किसको यक़ीं है