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प्रेम / कुमार अनुपम

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पृथ्वी के ध्रुवों पर
हमारी तलाश
एक दूसरे की प्रतीक्षा में है

अपने अपने हिस्से का नेह सँजोए
नदी-सी बेसाख्ता भागती तुम्हारी कामना
आएगी मेरे समुद्री धैर्य़ के पास

एक-न-एक दिन
हमारी उम्मीदें
सृष्टि की तरह फूले-फलेंगी ।