Last modified on 26 अक्टूबर 2012, at 22:03

धापी / सत्यनारायण सोनी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:03, 26 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यनारायण सोनी |संग्रह=कवि होने...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
धापी
जंगल से लकडिय़ां चुनकर
भूख से बिलबिलाते
बच्चों के साथ
अपने मन का दर्द
पालती है।

आज कह देगी
अपने आदमी से
जो दारू की
बोतल संग
पड़ा रहता है
खाट पर
हरदम,
'चुन ले कमबख्त,
कुछ लकडिय़ां
अपनी चिता के वास्ते।Ó

पर
घर आते-आते
वह अपने होंठ
सी लेती है
रोज की तरह
दिनभर की
गाढ़ी कमाई
पति-चरणों में
धर देती है,
क्योंकि
धापी
पति धर्म जो पालती है।

1989