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सीवर लाइन / पवन करण

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एक आदमी सीवर लाइन में
काम करने उतरता है
और वापस नहीं लौटता है
उसके पीछे दूसरा आदमी उतरता है
वह भी वापस नहीं लौटता
तीसरा उतरता है
तीसरा भी वापस नहीं लौटता

हमारा रूका हुआ मल बहाने
मल में उतरे कितने ही आदमी
मल में फँसकर रह जाते हैं
हमारे मल में लिथड़ी
उनकी लाशें बाहर निकलती हैं
जो वापस लौट आते हैं
उन्हे देखकर अचंभा होता है

हमारे पेट में रहते-रहते मल भी
हमारे जैसा हो गया है
वहाँ भी उनकी देह से लिपटकर
उन्हें जीते जी मार देने का
वह कोई अवसर नहीं छोड़ता

मल तसले से रिसकर देह पर
टपकते हुए चलने और
सिर पर सवार रहने का
सामंती संस्कार भूलता नहीं