लोग थे हैरान / परेशान
धरती होती जा रही थी
जल-निमग्न
जमुना कसमसा रही थी
अपनी परिधि में
इच्छाएँ थीं
भ्रष्टाचार के पुल-सी भग्न
प्रेयसी की मांसल देह
खो चुकी थी आज अपनी आँच
बन्द
कमरों में भी
लोग काँप रहे थे
लोग थे हैरान / परेशान
धरती होती जा रही थी
जल-निमग्न
जमुना कसमसा रही थी
अपनी परिधि में
इच्छाएँ थीं
भ्रष्टाचार के पुल-सी भग्न
प्रेयसी की मांसल देह
खो चुकी थी आज अपनी आँच
बन्द
कमरों में भी
लोग काँप रहे थे