Last modified on 7 जनवरी 2013, at 02:40

नई औरत / पंखुरी सिन्हा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:40, 7 जनवरी 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह क्षण भर भी नहीं
उसका एक बारीक़-सा टुकड़ा था बस,
जब लगाम मेरे हाथ से छूट गई थी,
और सारी सड़क की भीड़ के साथ-साथ
गाड़ियों के अलग-अलग हार्न की मिली जुली
चीख़ के बीचोंबीच,
अचानक ब्रेक लगने से घिसटकर रुकते टायरों के नीचे से,
लाल हो गई ट्रैफ़िक की बत्ती के ऊपर से,
चील की तरह, बाज की तरह,
तुम भी मेरे खुले कंधों पर झपट पड़े थे,
मैं दिखाऊंगी नहीं तुम्हें,
पर मेरे कंधों पर तुम्हारे पंजों की खरोंच के निशान हैं,
और क्यों रखूँ मैं इन्हें?
सिर्फ़ इसलिए कि ये तुम्हारे दिए हुए निशान हैं?
नहीं, मैं बताऊंगी नहीं तुम्हें,
पर मैं धो रही हूँ इन्हें,
दूब की नर्मी से,
ओस की ठंडक से,
धो रही हूँ तुम्हारे खुरों के निशान,
अपने कंधों पर से
दुर्घटना सड़क पर नहीं, मेरे अन्दर घटी है,
पर मैं बताऊंगी नहीं तुम्हें
अब तुम मेरे राजदार नहीं रहे...