Last modified on 22 जनवरी 2013, at 11:32

तुम जाओ / अनिरुद्ध उमट

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:32, 22 जनवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध उमट |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> त...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम जाओ
करनी है ठंडी
राख
मुझे

रखनी है
पलकों पर

तुम जाओगे नहीं तो
लौटोगे कैसे

तुम्हें लिखी जाती इबारत
पढ़ोगे कैसे

ज़रा दूर
जाओ

बाक़ी है
आँच
अभी