Last modified on 3 फ़रवरी 2013, at 17:59

गुरूत्वाकर्षण / राजेश जोशी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:59, 3 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश जोशी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> न्यूटन जेब ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

न्यूटन जेब में रख लो अपना गुरूत्वाकर्षण का नियम
धरती का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो रहा है ।

अब तो इस गोल-मटोल और ढलुआ पृथ्वी पर
किसी एक जगह पाँव टिका कर खड़े रहना भी मुमकिन नहीं
फिसल रही है हर चीज़ अपनी जगह से
कौन कहाँ तक फिसल कर जाएगा,
किस रसातल तक जाएगी यह फिसलन
कोई नहीं कह सकता
हमारे समय का एक ही सच है
कि हर चीज़ फिसल रही है अपनी जगह से ।

पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो रहा है ।

फिजिक्स की पोथियो !
न्यूटन के सिद्धान्त वाले सबक की ज़रूरत नहीं बची ।

पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो रहा है ।

कभी भी फिसल जाती है राष्ट्राध्यक्ष की जबान
कब किसकी जबान फिसल जाएगी कोई नहीं जानता
श्लोक को धकियाकर गिरा देती है फिसलकर आती गालियाँ
गड्डमड्ड हो गए है सारे शब्द
वाक्य से फिसलकर बाहर गिर रहे हैं उनके अर्थं
ऐसी कुछ भाषा बची है हमारे पास
जिसमें कोई किसी की बात नहीं समझ पाता
संवाद सारे ख़त्म हो चुके है, स्वगत कर रहा है
नाटक का हर पात्र ।

आँखों से फिसल कर गिर चुके हैं सारे स्वप्न ।

करोड़ों वर्ष पहले ब्रह्माण्ड में घूमती हज़ारों चट्टानों को
अपने गुरूत्वाकर्षण से समेट कर
धरती ने बनाया था जो चाँद
अपनी जगह से फिसल कर
किसी कारपोरेट के बड़े से जूते में दुबक कर बैठा है
बिल्ली के बच्चे की तरह ।

फिसलन ही फिसलन है पूरे गोलार्ध पर
और पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण ख़त्म हो गया है !

ओ नींद
मुझे इस भयावह स्वप्न-सत्य से बाहर आने का रास्ता दे !