Last modified on 17 फ़रवरी 2013, at 20:31

छाले / दिविक रमेश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:31, 17 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिविक रमेश |संग्रह=एक सौ एक बाल कव...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

माँ! बापू जब कूटा करते
जब हाथों में छाले पड़ते

जी करता बन कर दस्ताने
हाथों में उनके चढ़ जाऊँ

छालों से मैं उन्हें बचाऊँ
गोदी में उनकी चढ़ जाऊँ ।