Last modified on 27 मार्च 2013, at 13:13

साँचा:KKPoemOfTheWeek

रँग गुलाल के

रँग गुलाल के
और फाग के बोल सुहाने
बुनें इन्हीं से संवत्सर के ताने-बाने

ऋतु-प्रसंग यह मंगलमय हो
हर प्रकार से
दूर रहें दुख-दर्द-दलिद्दर
सदा द्वार से

कभी किसी को
कष्ट न दें जाने-अनजाने

अग्नि-पर्व यह
रंगपर्व यह सच्चा होवे
पाप-ताप सब
मन के-साँसों के यह धोवे

हमें न व्यापें
कभी स्वार्थ के कोई बहाने

यह मौसम है
राग-द्वेष के परे नेह का
हाँ, विदेह होने का
है यह पर्व देह का

साँस हमारी
इस असली सुख को पहचाने