Last modified on 16 मई 2013, at 06:04

आमंत्रण / नीरज दइया

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:04, 16 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह=उचटी हुई नींद / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अर्थ के अथाह जंगल में
बिखरे हैं कांटे
फैला है-
ढेर-सा दल-दल।
शब्दों का एक दल
परिचित है शायद
कुछ शब्द बुलाते हैं-
मुझे बार बार।
जब तक है यह आमंत्रण
इसी धरती पर रहूंगा मैं।