भौतिकता और चेतना के दो घटवाली जीवन-काँवर,
लेकर आता है जीव, श्वास की त्रिगुण डोर में अटका कर,
हर बार नये ही निर्धारण, काँवरिये की यात्रा के पथ
चक्रिल राहों पर भरमाता, देता फिर बरस-बरस भाँवर .
घट में धारण कर लिया आस्था-विश्वासों का संचित जल
अर्पित कर महाकाल को फिर, चल देता अपने नियतस्थल!