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अक्षरा / प्रतिभा सक्सेना

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तुम प्रतिष्ठित रहो सुयश प्रदायिनी बन
हृदय में निष्ठा स्वरूप बसो निरंतर!

प्रभा बन सुविकीर्ण प्रतिपल नयन में हो
बन अचल विश्वास अंतर में समाओ,
समर्पित प्रति क्षण तुम्हारे प्रति रहूँ
तुम सूक्ष्मतम अणु रूपिणी सी व्याप जाओ!

शक्ति बन कर समा जाओ प्राण-मन में
त्रिगुणमयि चिन्मयातीता परम सुन्दर!

राग में मेरे समाओ मंगला सी,
शब्द मेरे अक्षरा जीवन्त चिर तुम,
दिव्यता बन मृत्युमय तन में रमो,
आ इन स्वरों में बसो चित् की रम्यता बन,

देवि, तुम हर रूप में बिम्बित रहो
ये वृत्तियाँ विश्राम लें लवलीन हो कर!