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नवधा / गोविन्ददास

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भजहु रे मन नन्द नन्दन अभय-चरणाविन्द।
दुर्लभ मानुष-जनम सत्संग तरह ए भव-सिन्धु।।
शीत आतप बात वरषा ए दिन यामिनि जागि।
विफल सेवन कृपण दुरजन चपल सुख सम लागि।।
एक धन यौवन पुत्र परिजन एत कि अछि परतीति।
कमलदल जल जिवन ढलमल भजहु हरि-पद नीति।।
श्रवन कीर्त्तन स्मरण वन्दन पाद-सेवन दास।
पुजन ध्यान आत्म-निवेदन गोविन्ददास अभिलाष।।